Supreme Court Implements Reservation for the First Time – Historic SC/ST Inclusion in Non-Judicial Posts



लेखक: Rohit Ojha (Advocate)

शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट में एससी/एसटी के लिए आरक्षण लागू – क्या है पूरा निर्णय?


🔍 परिचय

भारत में आरक्षण (Reservation) एक ऐसा विषय है जिस पर लंबे समय से बहस होती रही है। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (उच्चतम न्यायालय) ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है, जिसके तहत अब कोर्ट के नॉन-जुडिशियल स्टाफ में एससी (SC) और एसटी (ST) वर्ग के लिए आरक्षण लागू किया गया है।


🏛️ सुप्रीम कोर्ट में पहली बार आरक्षण क्यों?

भारत के सुप्रीम कोर्ट को बने 75 साल हो चुके हैं, लेकिन अब तक वहाँ कोई आरक्षण व्यवस्था लागू नहीं थी। पहली बार ऐसा हुआ है कि कोर्ट के नॉन-जुडिशियल स्टाफ में डायरेक्ट भर्ती और प्रमोशन में आरक्षण लागू किया गया है।


👩‍⚖️ जजों को आरक्षण नहीं

यह स्पष्ट करना ज़रूरी है कि यह आरक्षण जजों की नियुक्ति पर लागू नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति कोलेजियम सिस्टम के तहत होती है और उसमें आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता।


👨‍💼 किन पदों पर लागू होगा आरक्षण?

यह आरक्षण सिर्फ नॉन-जुडिशियल स्टाफ पर लागू होगा, जैसे:


रजिस्ट्रार


पर्सनल असिस्टेंट


कोर्ट असिस्टेंट


लाइब्रेरियन


चेंबर अटेंडेंट आदि


एडवोकेट्स और जज इस दायरे में नहीं आते।


📊 कितना आरक्षण मिलेगा?

सरकार द्वारा निर्धारित आरक्षण मानकों को लागू किया गया है:


SC (अनुसूचित जाति): 15%


ST (अनुसूचित जनजाति): 7.5%


यह आरक्षण भर्ती और प्रमोशन दोनों में मिलेगा।


📅 यह नियम कब से लागू हुआ?

यह पूरा फैसला जून 2024 के एक सर्कुलर के तहत जारी किया गया, जिसे हाल ही में पब्लिक किया गया है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में यह प्रणाली लागू हो चुकी है।


⚖️ सीजेआई बी.आर. गवाई का बयान

मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवाई ने कहा:


"जब देश के सभी बड़े संस्थान आरक्षण को लागू करते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट इससे अलग क्यों रहे?"


उन्होंने यह भी कहा कि समानता और प्रतिनिधित्व (Equality & Representation) साथ-साथ चलने चाहिए। आरक्षण कोई पक्षपात नहीं, बल्कि समावेशन (Inclusion) की दिशा में एक संवैधानिक कदम है।


📚 दो ज़रूरी केस रेफरेंस:

M. Nagaraj Case (2006) – सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण की अनुमति दी थी लेकिन कई शर्तों के साथ।


Jarnail Singh Case (2018) – इन शर्तों में से बैकवर्डनेस साबित करने की बाध्यता को हटा दिया गया।


 निष्कर्ष

यह फैसला देश के न्यायिक ढांचे में एक बड़ा और साहसी बदलाव है। सुप्रीम कोर्ट जैसे सर्वोच्च संस्थान में आरक्षण लागू होना एक सकारात्मक संकेत है कि समावेशी न्याय की ओर हम बढ़ रहे हैं।


🗣️ आपका क्या विचार है?

क्या यह फैसला सही दिशा में कदम है? क्या सुप्रीम कोर्ट को पहले ही यह कदम उठा लेना चाहिए था?